बुधवार, 28 अगस्त 2013

ग़ज़ल 

राही  को उसकी राह दिखाती हैं उंगलियाँ ,
धरती पकड़ के राह बनाती हैं उंगलियाँ। 

दुनियाँ में जो आया हो कुछ रोज़ ही पहले ,
ऊँगली पकड़ के रिश्ता बनाती हैं उंगलियाँ। 

वेद-पुराण या क़ुरआन या गीता  से ग्रन्थ हों ,
कलम से पहला अंक लिखाती  हैं उंगलियाँ। 

आँखों में धनक कान में जल-तरंग की लहरें ,
कच्ची उमर में जब भी छू जाती हैं उंगलियाँ।

आँचल को बार बार खींच अलकों को संवारें ,
इक फूल थमा दिल  को लुभाती हैं उंगलियाँ।

पूरा गगन हँसा और इक रंगोली छा गई ,
हल्दी हिना से हाथ सजाती हैं उंगलियाँ।

फाल्गुन में भी सावन की बौछार रसभरी ,
गालों पे जब रंग लगाती हैं उंगलियाँ।

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