शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

स्वतंत्रता दिवस पर

स्वतंत्रता दिवस पर

 

अपने पंख,

गगन अपना,

अपने सपने,

अपनी ही परवाज़ हो।

स्वराज हो, सुराज हो.........।

 

पांवों तले डगर मिले,

असीम पर नज़र रहे,

मस्तक हो आकाश में,

और बादलों पर हों कदम,

हर कदम के सामने

इक नया आग़ाज़ हो।

स्वराज हो, सुराज हो.........।

 

खिड़कियाँ मन की खुलें,

मैल सब मन के धुलें,

देश के हर इक नगर में,

हर नगर की हर गली में,

हर गली के उस छोर पर,

बैठे हुए हर शख़्स की

उम्मीद से भी हम जुड़ें,

अब छोड़ पीछे रात को,

हम भोर के सपने बुनें,

चाँदी की हो हर निशा,

सोने सा हर प्रभात हो।

स्वराज हो, सुराज हो.........।

 

भूखा न कोई पेट हो,

गीली न कोई आँख हो,

फरियाद रह जाए अनसुनी,

ऐसी न कोई आवाज़ हो।

स्वराज हो, सुराज हो.........।

शनिवार, 9 अगस्त 2014

ग़ज़ल 

राही  को उसकी राह दिखाती हैं उंगलियाँ ,
धरती पकड़ के राह बनाती हैं उंगलियाँ। 

दुनियाँ में जो आया हो कुछ रोज़ ही पहले ,
ऊँगली पकड़ के रिश्ता बनाती हैं उंगलियाँ। 

वेद-पुराण या क़ुरआन या गीता  से ग्रन्थ हों ,
कलम से पहला अंक लिखाती  हैं उंगलियाँ। 

आँखों में धनक कान में जल-तरंग की लहरें ,
कच्ची उमर में जब भी छू जाती हैं उंगलियाँ।

आँचल को बार बार खींच अलकों को संवारें ,
इक फूल थमा दिल  को लुभाती हैं उंगलियाँ।

पूरा गगन हँसा और इक रंगोली छा गई ,
हल्दी हिना से हाथ सजाती हैं उंगलियाँ।

फाल्गुन में भी सावन की बौछार रसभरी ,
गालों पे जब रंग लगाती हैं उंगलियाँ।

बुधवार, 28 अगस्त 2013

ग़ज़ल 

राही  को उसकी राह दिखाती हैं उंगलियाँ ,
धरती पकड़ के राह बनाती हैं उंगलियाँ। 

दुनियाँ में जो आया हो कुछ रोज़ ही पहले ,
ऊँगली पकड़ के रिश्ता बनाती हैं उंगलियाँ। 

वेद-पुराण या क़ुरआन या गीता  से ग्रन्थ हों ,
कलम से पहला अंक लिखाती  हैं उंगलियाँ। 

आँखों में धनक कान में जल-तरंग की लहरें ,
कच्ची उमर में जब भी छू जाती हैं उंगलियाँ।

आँचल को बार बार खींच अलकों को संवारें ,
इक फूल थमा दिल  को लुभाती हैं उंगलियाँ।

पूरा गगन हँसा और इक रंगोली छा गई ,
हल्दी हिना से हाथ सजाती हैं उंगलियाँ।

फाल्गुन में भी सावन की बौछार रसभरी ,
गालों पे जब रंग लगाती हैं उंगलियाँ।