स्वतंत्रता दिवस पर
अपने पंख,
गगन अपना,
अपने सपने,
अपनी ही परवाज़ हो।
स्वराज हो, सुराज हो.........।
पांवों तले डगर मिले,
असीम पर नज़र रहे,
मस्तक हो आकाश में,
और बादलों पर हों कदम,
हर कदम के सामने
इक नया आग़ाज़ हो।
स्वराज हो, सुराज हो.........।
खिड़कियाँ मन की खुलें,
मैल सब मन के धुलें,
देश के हर इक
नगर में,
हर नगर की हर गली में,
हर गली के उस छोर पर,
बैठे हुए हर शख़्स की
उम्मीद से भी हम जुड़ें,
अब छोड़ पीछे रात को,
हम भोर के सपने बुनें,
चाँदी की हो हर निशा,
सोने सा हर प्रभात हो।
स्वराज हो, सुराज हो.........।
भूखा न कोई पेट हो,
गीली न कोई आँख हो,
फरियाद रह जाए अनसुनी,
ऐसी न कोई आवाज़ हो।
स्वराज हो, सुराज हो.........।