रविवार, 1 मई 2011

आ! धरा के ज्येष्ठ सुत

आ! धरा के ज्येष्ठ सुत,

हम करें सत्कार तेरा!


धूल में लथपथ हुआ तू,

पुष्प में तब गंध आई,

चैन से हम सो सके,

सीमा पर जागा तू भाई!

हम चलें संग दो कदम,

है मोड़ पर अगले सवेरा;

आ! धरा के ज्येष्ठ सुत,
हम करें सत्कार तेरा!

अन्न तो तब ही फलेगा,
स्वेद का जब मेह होगा,

दीप भी वह ही जलेगा,

श्रम का जिसमें स्नेह होगा,

तेज तेरा सूर्य सा है,

कैसे जी पाए अंधेरा;

आ! धरा के ज्येष्ठ सुत,

हम करें सत्कार तेरा!


हल तेरा और कलम मेरा,

उकेरें स्वर्ग वसुंधरा पर,

प्रेम की हम दुग्ध-सलिला,

खींच लाएंगे धरा पर,

तेरा लहू, तेरा पसीना,

तेरा श्रम श्रृंगार तेरा;

आ! धरा के ज्येष्ठ सुत,

हम करें सत्कार तेरा!

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